DHANRAJ PILLE BIOGRAPHY
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सपने देखने पर किसी तरह की रोक नहीं है। दुनिया के लाखों-करोड़ों लोग
हर घड़ी खुद के लिए
बड़े-बड़े सपने देखते हैं…
लेकिन गिने-चुने लोग ही होते हैं
जो इन्हें पूरा करने के लिए
अपनी जान लगा देते हैं।
लकड़ी की टेहनी से बनी हॉकी स्टिक
और
फेके हुए बॉल के साथ हॉकी खेलने वाले
एक बच्चे ने
ऐसा ही एक सपना देखा था
अपने मां की खातिर देश के लिए गोल्ड मेडल जितने का सपना...
दोस्तों
आज हम जिस शक्सीयत के बारे में जानने वाले हैं उनका नाम है धनराज पिल्लै
तमिलनाडू से रोजी-रोटी की तलाश में
महाराष्ट्र में आए
एक सामान्य परिवार के
इस असामान्य लड़के का जन्म july 16 1968 को पुणे के खड़की में हुआ
धनराज के पिता का नाम
नागालिंगम पिल्लै है
ये पुणे ऑर्डिनेंस फैक्टरी में बतौर ग्राउंड्समैन काम करते थे।
मां का नाम
अंदालम्मा पिल्लई
धनराज को चार भाई है चारों हॉकी खेलते हैं
एक भाई रमेश पिल्लै
भारत की ओरसे आंतरराष्ट्रीय मैच खेल चुके हैं
धनराज का बचपन
धनराज का बचपन Ordinance Factory Staff Colony में बीता,
बड़ा परिवार और लिमिटेड इन्कम के कारण धनराज के परिवार के पास ज्यादा सुविधाएं नहीं थी
हॉकी का दौर था
धनराज की मां ने
हॉकी में अपने बच्चो का करियर देखा
और अपने
बच्चो को खूब प्रेरित करती रही
संघर्ष के दौरान
हॉकी छोड़ने का फैसला करने वाले
धनराज पिल्लै को
मां ने ही समझा बुझाकर
अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए प्रेरित किया
धनराज 1985 के आस-पास
अपने बड़े भाई के पास
मुंबई चले गए,
और उनके गाइडेंस में
ट्रेनिंग लेने लगे
रमेश ने अपने क्लब में
खाली जगह पे
एक्स्ट्रा खिलाड़ी के रूप में उन्हें शामिल कर लिया
धनराज के निखरे खेल ने उन्हें महिंद्रा एंड महिंद्रा क्लब में जगह दिला दी जहां उन्हें भारत के तत्कालीन कोच
J.M. Carvalho द्वारा बेहतरीन प्रशिक्षण मिला।
1987, संजय गांधी टूर्नामेंट. दिल्ली का हॉकी मैदान
यहां पर धनराज ने अपना हुनर दिखा दिया
मैच में बेस्ट प्लेयर तो बने ही
साथ ही साथ
नेशनल हॉकी चैंपियनशिप में
अपनी जगह पक्की कर ली.धनराज ने 1989 में पहली बार इंटरनेशनल मैच खेला और उसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़ के नहीं देखा
1989 से 2004 तक के 15 साल के अपने करियर में उन्होंने 339 इंटरनेशनल मैच खेले और करीब 170 गोल किये।
उनकी कप्तानी में भारत ने 1998 और 2003 में एशिया कप जीता।
कोलोन, जर्मनी में आयोजित 2002 चैंपियंस ट्रॉफी में उन्हें टूर्नामेंट का सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी घोषित किया गया था
ब्रिटन , फ्रांस, होंनकोंग , मलेशिया और जर्मनी के अलावा भी कई देशों में धनराज क्लब हॉकी खेल चुके हैं |
इंडियन एयरलाइंस की नौकरी कर रहे धनराज फिलहाल इंडियन एयरलाइंस टीम के कोच भी है
धनराज के पुरस्कार
1995 में उन्हें ‘अर्जुन पुरस्कार’ से नवाजा गया |
1998-99 के लिए धनराज को के.के. बिरला फाउंडेशन पुरस्कार’ दिया गया
वर्ष 1999-2000 में उन्हें भारत के सर्वोच्य खेल पुरस्कार राजीव गांधी खेल रत्न से सम्मानित किया गया।
वर्ष 2000 में उन्हें नागरिक सम्मान पद्म श्री प्रदान
किया गया|
2017 में ईस्ट बेंगाल क्लब ने उन्हें भारत गौरव पुरस्कार दिया
चलिए दोस्तों
जानते है धनराज की जिंदगी जुड़ी कुछ दिलचस्प बातों को
१) धनराज पिल्ले के जिंदगी में नंबर चार का खास असर दिखाई देता है
धनराज को चार भाई है
उन्होंने
चार ओलंपिक गेम्स
(1992, 1996, 2000 और 2004),
चार वर्ल्ड कप टूर्नामेंट
(1990, 1994, 1998 और 2002),
चार चैंपियंस ट्रॉफी टूर्नामेंट्स
(1995, 1996, 2002 और 2003),
और
चार एशियाई गेम्स
(1990, 1994, 1998 और 2002) खेलें है
और ये उनका रिकॉर्ड भी है जो अब तक किसी से नहीं तोड़ा
2) सिल्वर विश्व कप (1994) में वर्ल्ड इलेवन टीम में शामिल होने वाले पिल्लै एकमात्र भारतीय खिलाड़ी थे
3) महान फॉरवर्ड खिलाड़ी मोहम्मद शाहिद से प्रभावित थे और उन्हें अपना आदर्श मानते थे।
4) धनराज पिल्लै महाराष्ट्र खेल पुरस्कारों की समिति के प्रमुख है
5) धनराज काफी दयालु हैं सबको मदत करते हैं 2016 में उन्होंने 6 हॉकी प्लेयर्स को एक लाख पच्चीस हजार रूपए बांटे.
6) धनराज पिल्ले ने 2014 में आम आदमी पार्टी ज्वाइन कर अपना राजनीतिक कैरियर शुरू किया
7) 2007 में संदीप मिश्रा ने धनराज पिल्ले की बायोग्राफी लिखी है कि जिसका नाम है Forgive me Amma
कहते है खेलो में राजनीति के दखलंदाजी के चलते धनराज को कई बार ज्यादती का सामना करना पड़ा
एथेंस ओलंपिक 2004 में अपना आखिरी मैच खेल रहे धनराज को पूरे 70 मिनट का खेल खेलने नहीं दिया गया. शायद इस ओलंपिक में वो गोल्ड जितने का सपना पूरा कर लेते
धनराज ने अपनी मां के सामने ये कसम खाई थी के जब तक देश को ओलंपिक गोल्ड ना दिला दे वो शादी नहीं करेंगे....
धनराज पिल्लै ने कभी शादी नहीं की
अपनी मां सपना पूरा ना करने की टीस शायद जिंदगी भर रहे
दोस्तों हॉकी के गेम में जीत और हार टीम वर्क का नतीजा होता है
धनराज पिल्लै के करियर को देखा जाए तो एक टूटी हुई हॉकी स्टिक से शुरू किए हुए सफ़र को 300 से
ज्यादा इंटरनेशनल मैचों तक ले जाना कोई साधारण उपलब्धि नहीं है
तमाम उम्र अपने मां के सपने को साकार करने के लिए कोशिश करने वाले धनराज पिल्लै को
दिल से सलाम...
बेटा हो तो धनराज जैसा
धनराज पिल्लै को
जनम दिन की हार्दिक शुभकामनाएं
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